Sunday, September 23, 2012

हुस्न और जलपान

बोल,...बोल,,.बोल रहा था राहू , और शनि मंगल चुप थे।
अवधूत ने का के डंका बजाई,
बोला आज नाड नाच होय, सब सम-मिश्रित मिस्टी बात होय।

कह सलिल मियाँ एक आह भर धाय, जब भी मिलती मुझे मधुरा,
उसकी कशिश में खीचा चला जाता हु, भूल देह-बहन
इच्छाओं से तप्त,
जलती ख्वाइशों की मूरत बन जाता हु,

अवधूत स्वामी बोले की चाय पी बालक की हर नाडी साफ़ नहीं होती,
मंगल बलवान हो या हो शनि पहलवान,
हर्र खुजली आराम नहीं देती,
अगर तू पाना चाहता है उस इच्छाधारी सुंदरी को,
तोह बाबा कह जाके मिल महत्याग्न आमोद प्रेम-पुजारी को।

अमोदजी पधारे,
बोले युवती तेज़ है तर्रार, जैसे हो चाकू की धार,
घर उसका था स्वर्ग और रहना उसका तपो लोक को,
पल्टाके दूर नदियों को, आई स्वयम तेरी भाग्य मधुरा बन के।
जैसे तिजोरी की चावी खोल खुशियों खजाना बन के,
नसीब तेरा है बलवान, जो तेरे नसीब पे बैठी वो ख़ूबसूरत मूरत
और देवों की शान।
 जुख जरा ओ  बालक, ना  बन मुरख,
सजा के रखना, संभाल रखना इसे तावीज़ बनकर।

एवा ज़ुल्लाया,.... भ्हुर्र्क्खाग्नी ,
मई करूँगा इससे शादी,
बनाऊंगा इससे मेरी घरवाली,
सारे नाड है एलास्टिक मेरे, सारे एलास्टिक है नाड मेरे,
रहू शनि का पुजारी हु,
अमावस्या में पूज्य मनाया,
दानोवों का देव हु,
दीर्घ राक्षस में बनता, दन्त विधुशक में खुजलाता।

अब क्या होगा, सलिल भाई डर गये,
कैसे पौ मधुरा को और
कहा इस प्रेमी पागलों के चक्रविहू में फस गए।
आमोद-प्रेम पुजारी कहे : चिंता ना करो सलिल भाई,
एक छोटा उपाय है आपको बताए ,
पर इसके लिए बक्शीश लगेगा, जो इनाम आधा आधा बटेगा,
बस आप सिर्फ बाबा को बुला कहना,
निखिल भाई के यहाँ आपको जाके है "बैठना",
बस बाबा यु ही पिघल गये,
बिना व्हिस्की रूम दाल नशे से गये,
चिंता साड़ी दूर जाती गयी,
बस अब एक परेशानी है छोटी सी रही,
अब आमोद सलिल बीच इनाम कैसे बटेगा।


Wednesday, July 11, 2012

तेरा नशा


खुशबु में युही समा जाता हु,
तेरी याद में
हर अंग बिखर जाता है
अब तो मेरी रूह तुज में समाई हुई,
अब तो तेरी याद  मुजमे आग जलाई हुई।

हर फनकार बेईमाना लगता है, अब हर गीत सन्नाटा लगता है,
तेरे बिना मेरा जीना अब जीवन की परिकस्था  लगता है।

जिधर देखू हर रूप में तुम हो समाई हुई,मेरे हर बोल तेरा राग बताते है।
नज़र तोह सिर्फ तुजे पहचाने, बांध आँखों से  भी निशाना ताके
कब इन कष्टों का अंत होगा,
कब तेरे नाजुक अंग का स्पर्श होगा।

ज्योतिर्मई  बन जाऊ- तेरे स्पर्श के ख़याल से,
ही में खूबसूरत ख्वाब में रंग जाऊ।
जहाँ सिर्फ तुम हो और मई हु, और हर रोमाँच मे सिर्फ हम-तुम हो,
ऐसी ही दुनिया सवरने लग जाऊ।

मेरा अंत मत देख ओ..मुसाफिर विधाता,
ले चल मुझे, दिला उसका दीदार ओ...विधाता।
कट रहा है हर कतरा मेरे लहू का,
शायद वो भी तेरी याद में कट जाये।