तेरी याद में
हर अंग बिखर जाता है
अब तो मेरी रूह तुज में समाई हुई,
अब तो तेरी याद मुजमे आग जलाई हुई।
हर फनकार बेईमाना लगता है, अब हर गीत सन्नाटा लगता है,
तेरे बिना मेरा जीना अब जीवन की परिकस्था लगता है।
जिधर देखू हर रूप में तुम हो समाई हुई,मेरे हर बोल तेरा राग बताते है।
नज़र तोह सिर्फ तुजे पहचाने, बांध आँखों से भी निशाना ताके
कब इन कष्टों का अंत होगा,
कब तेरे नाजुक अंग का स्पर्श होगा।
ज्योतिर्मई बन जाऊ- तेरे स्पर्श के ख़याल से,
ही में खूबसूरत ख्वाब में रंग जाऊ।
जहाँ सिर्फ तुम हो और मई हु, और हर रोमाँच मे सिर्फ हम-तुम हो,
ऐसी ही दुनिया सवरने लग जाऊ।
मेरा अंत मत देख ओ..मुसाफिर विधाता,
ले चल मुझे, दिला उसका दीदार ओ...विधाता।
कट रहा है हर कतरा मेरे लहू का,
शायद वो भी तेरी याद में कट जाये।
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